‘शहीद सिर्फ वर्दी नहीं, हक भी मांगे!’—आरजेडी सांसद मनोज झा की अर्धसैनिक बलों के सम्मान की मांग
मनोज झा ने इस मांग को लेकर गृह मंत्री अमित शाह को पूर्व बिहार उपमुख्यमंत्री और आरजेडी अध्यक्ष तेजस्वी यादव द्वारा लिखे गए पत्र का हवाला दिया।

चंपारण केशरी/दीपांकर कुमार द्वारा पोस्टेड /पटना। राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा ने केंद्र सरकार से अर्धसैनिक बलों के जवानों के लिए समान सम्मान और मुआवजे की मांग की है। उन्होंने कहा कि अर्धसैनिक बलों के शहीदों को भारतीय सेना के शहीदों के बराबर ‘बैटल कैजुअल्टी’ का दर्जा दिया जाना चाहिए, ताकि उन्हें उसी प्रकार के लाभ, सुविधाएं और सम्मान मिल सकें।
मनोज झा ने इस मांग को लेकर गृह मंत्री अमित शाह को पूर्व बिहार उपमुख्यमंत्री और आरजेडी अध्यक्ष तेजस्वी यादव द्वारा लिखे गए पत्र का हवाला दिया। तेजस्वी यादव ने अपने पत्र में अर्धसैनिक बलों को सेना के समान पेंशन, मुआवजा, सरकारी नौकरी और राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में नाम दर्ज कराने की भी मांग की है।
देश के अर्धसैनिक बल जैसे सीआरपीएफ,बीएसएफ, आईटीबीपी और सीआरपीएफ आतंकवाद, नक्सलवाद, सीमाओं की सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कई बार ये जवान सीमा पर और अन्य खतरनाक क्षेत्रों में अपनी जान की परवाह किए बिना देश की सुरक्षा करते हैं। लेकिन, इन बलों के शहीदों को अभी तक भारतीय सेना के जवानों के समान आधिकारिक दर्जा, सम्मान और वित्तीय लाभ नहीं मिल पाते हैं।
मनोज झा ने कहा, “शहादत की कोई वर्दी नहीं होती। अर्धसैनिक बल के जवान भी देश के लिए बलिदान देते हैं, इसलिए उन्हें उसी दर्जे और सम्मान का हक मिलना चाहिए जो सेना के जवानों को मिलता है।” उन्होंने यह भी कहा कि तेजस्वी यादव का पत्र संवेदना और संकल्प का मेल है, जो अर्धसैनिक बलों के लिए न्याय दिलाने का प्रयास है।
तेजस्वी यादव ने अपने पत्र में यह भी कहा कि कई बार जवान युद्धजनित चोटों या बीमारियों के कारण तुरंत नहीं बल्कि कुछ समय बाद शहीद हो जाते हैं। ऐसे मामलों में भी उन्हें ‘शहीद’ का दर्जा दिया जाना चाहिए। उन्होंने मांग की कि अर्धसैनिक बलों के जवानों और उनके परिवारों को सेना के समान पेंशन, सरकारी नौकरी और मुआवजा मिले।
पत्र में तीन मुख्य मांगें प्रमुख रूप से उठाई गई हैं—पहला, अर्धसैनिक बलों के जवानों को ‘बैटल कैजुअल्टी’ घोषित किया जाए। दूसरा, उनके परिवारों को समान पेंशन और सरकारी नौकरी मिलनी चाहिए। तीसरा, उनके नाम राष्ट्रीय युद्ध स्मारक और अन्य युद्ध स्मारकों में दर्ज किए जाएं। इसके साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों से मिलने वाली सहायता और सुविधाओं में भी समानता लाई जाए।
राजनीतिक विशेषज्ञ इस मुद्दे को महत्वपूर्ण मानते हैं क्योंकि अर्धसैनिक बलों का देश की सुरक्षा में योगदान बहुत बड़ा है। इनके सम्मान की मांग देश के कई हिस्सों में लंबे समय से उठ रही है, लेकिन अभी तक इस मामले में ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।
मनोज झा की यह पहल अर्धसैनिक बलों के लिए संवेदनशील और न्यायसंगत मानी जा रही है। इससे देश के उन लाखों जवानों और उनके परिवारों को न्याय मिलेगा जो सीमा पर अथवा आतंकी और नक्सली हमलों में अपने प्राण न्योछावर करते हैं।
अब देखना यह है कि केंद्र सरकार इस मांग पर क्या निर्णय लेती है और क्या अर्धसैनिक बलों को भारतीय सेना के समान सम्मान, मुआवजा और सुविधाएं मिल पाती हैं। यह फैसला देश की सुरक्षा व्यवस्था और जवानों के मनोबल को भी मजबूती देगा।